मिटटी का तन हुआ पवित्र गंगा के स्नान से
अंत करण हो जाये पवित्र जगदम्बे के ध्यान से
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्रम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते
शक्ति शक्ति दो मुझे करू तुम्हारा ध्यान
पाठ निर्विगन्य हो तेरा मेरा हो कल्याण
ह्रदय सिंहासन पर आ बैठो मेरी माँ
सुनो विनय माँ दिन की जग जननी वरदान
सुन्दर दीपक घी भरा करू आज तैयार
ज्ञान उजाला माँ करू मेत्तो मोह अन्धकार
चंद्र सूर्य की रौशनी चमके चमन अखंड
सब में व्यापक तेज़ है जलवा का प्रचंड
जलवा जग जननी मेरी रक्षा करो हमसे
दूर करो माँ अम्बिके मेरे सभी कलेश
शरधा और विश्वास से तेरी ज्योत जलाऊ
तेरा ही है अश्त्र तेरे ही गुण गाउ
तेरी अनदभक्त गात को पढूं में निश्चय धर
साक्षात् दर्शन करू तेरे जगत आधार
मन चंचल से बात के समय जो औगुन होये
देती अपनी दया से ध्यान न देना कोय
मैं अंजान मलिन मन ना जानू कोई रीत
अत पट वाणी को ही माँ समझो मेरी प्रीत
चमन के औगुन बहुत है करना नहीं ध्यान
सिंहवाहिनी माँ अम्बिके करो मेरा कल्याण
धन्य धन्य माँ अम्बिके शक्ति शिवा विशाल
अनघ अनघ में रम रही डटी दिन दयाल