॥ दोहा ॥
प्रन्वाऊ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान ।
श्री गणेश शारद सहित, बसों ह्रदय में आन ॥
अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरुस्वामी सुजान ।
दोषों से मैं भरा हुआ हूँ तुम हो कृपा निधान ॥
॥ चौपाई ॥
जय नारायण जय निखिलेशवर ।
विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर ॥
यंत्र-मंत्र विज्ञानं के ज्ञाता ।
भारत भू के प्रेम प्रेनता ॥
जब जब हुई धरम की हानि ।
सिद्धाश्रम ने पठए ज्ञानी ॥
सच्चिदानंद गुरु के प्यारे ।
सिद्धाश्रम से आप पधारे ॥
उच्चकोटि के ऋषि-मुनि स्वेच्छा ।
ओय करन धरम की रक्षा ॥
अबकी बार आपकी बारी ।
त्राहि त्राहि है धरा पुकारी ॥
मरुन्धर प्रान्त खरंटिया ग्रामा ।
मुल्तानचंद पिता कर नामा ॥
शेषशायी सपने में आये ।
माता को दर्शन दिखलाये ॥
रुपादेवि मातु अति धार्मिक ।
जनम भयो शुभ इक्कीस तारीख ॥
जन्म दिवस तिथि शुभ साधक की ।
पूजा करते आराधक की ॥
जन्म वृतन्त सुनाये नवीना ।
मंत्र नारायण नाम करि दीना ॥
नाम नारायण भव भय हारी ।
सिद्ध योगी मानव तन धारी ॥
ऋषिवर ब्रह्म तत्व से ऊर्जित ।
आत्म स्वरुप गुरु गोरवान्वित ॥
एक बार संग सखा भवन में ।
करि स्नान लगे चिन्तन में ॥
चिन्तन करत समाधि लागी ।
सुध-बुध हीन भये अनुरागी ॥
पूर्ण करि संसार की रीती ।
शंकर जैसे बने गृहस्थी ॥
अदभुत संगम प्रभु माया का ।
अवलोकन है विधि छाया का ॥
युग-युग से भव बंधन रीती ।
जंहा नारायण वाही भगवती ॥
सांसारिक मन हुए अति ग्लानी ।
तब हिमगिरी गमन की ठानी ॥
अठारह वर्ष हिमालय घूमे ।
सर्व सिद्धिया गुरु पग चूमें ॥
त्याग अटल सिद्धाश्रम आसन ।
करम भूमि आये नारायण ॥
धरा गगन ब्रह्मण में गूंजी ।
जय गुरुदेव साधना पूंजी ॥
सर्व धर्महित शिविर पुरोधा ।
कर्मक्षेत्र के अतुलित योधा ॥
ह्रदय विशाल शास्त्र भण्डारा ।
भारत का भौतिक उजियारा ॥
एक सौ छप्पन ग्रन्थ रचयिता ।
सीधी साधक विश्व विजेता ॥
प्रिय लेखक प्रिय गूढ़ प्रवक्ता ।
भुत-भविष्य के आप विधाता ॥
आयुर्वेद ज्योतिष के सागर ।
षोडश कला युक्त परमेश्वर ॥
रतन पारखी विघन हरंता ।
सन्यासी अनन्यतम संता ॥
अदभुत चमत्कार दिखलाया ।
पारद का शिवलिंग बनाया ॥
वेद पुराण शास्त्र सब गाते ।
पारेश्वर दुर्लभ कहलाते ॥
पूजा कर नित ध्यान लगावे ।
वो नर सिद्धाश्रम में जावे ॥
चारो वेद कंठ में धारे ।
पूजनीय जन-जन के प्यारे ॥
चिन्तन करत मंत्र जब गायें ।
विश्वामित्र वशिष्ठ बुलायें ॥
मंत्र नमो नारायण सांचा ।
ध्यानत भागत भुत-पिशाचा ॥
प्रातः कल करहि निखिलायन ।
मन प्रसन्न नित तेजस्वी तन ॥
निर्मल मन से जो भी ध्यावे ।
रिद्धि सिद्धि सुख-सम्पति पावे ॥
पथ करही नित जो चालीसा ।
शांति प्रदान करहि योगिसा ॥
अष्टोत्तर शत पाठ करत जो ।
सर्व सिद्धिया पावत जन सो ॥
श्री गुरु चरण की धारा ।
सिद्धाश्रम साधक परिवारा ॥
जय-जय-जय आनंद के स्वामी ।
बारम्बार नमामी नमामी ॥