Ganga

Ganga Stuti – गंगा स्तुति

जय जय भगीरथ नंदिनी, मुनि चय चकोर – चंदनी,
नर – नाग- विबुध- बंदिनी जय जह्नु बालिका।
विष्णुपद सरोजजासी, ईस-सीस पर बिभासि,
त्रिपथगासि, पुण्यराशि, पापछालिका॥१॥

विमल विपुल बहसि बारी, शीतल त्रयताप – हारी,
भंवर बर बिभंगतर तरंग मलिका।
पुरजन पूजाेपहार, शोभित शशि धवलदार,
भंजन भव भार, भक्ति कल्पथालिका ॥२॥

निज तटबासी बिहंग, जल-थर-चर पशु पतंग
की, जटिल तापस सब सरिस पालिका।
तुलसी तब तीर तीर सुमिरत रघुवंश बीर,
बिचरत मति देहि मोह-महिष-कालिका॥३॥

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