॥ दोहा ॥
ॐ नमो गणपति गुरू , नमो सरस्वती माया
देव सुयशवर्णन करूँ , कण्ठ विराजोआय ॥
॥चौपाई॥
नमो देव नारायण स्वामी। घट घट के प्रभु अन्तर्यामी॥
जगत उजागर सब गुण। सागर देवनारायण नटवर नागर ॥
जय जय जय भक्तन हितकारी इच्छा पूरण करो हमारी ॥
भोग मोक्ष के दाता देवा। निस दिन करूँ आपकी सेवा ॥
दे सत पंथ कुपंथ निवारो। किरपा कर भव पार उतारो ॥
अधम उधारण नाम तुम्हारा। भक्त मनोरथ पूरण हारा ॥
धर कर संत रूप यदुराया। साडू माता को याचन आया ॥
करत स्नान साडुमाता सुन आई। अपने घर खुद भिक्षा लाई॥
प्रेम विवश ज्यों की त्यों धाई। बिना वस्त्र पहने चली आई ॥
नग्न देख प्रभु संकुचे मन माई। पीठ फेरली जब यदुराई ॥
साडूमाता यो वचन उचारा। तुम हो जगत पिता करतारा ॥
मैं बालक तुम हो पितु माता। नग्न देख प्रभु क्यो शरमाता ॥
सुनत बचन देखा भगवन्ता। बाल बढ़ाय तन ढ़का तुरन्ता ॥
ले भिक्षा यों कहत मुरारी। मांगहु वर इच्छा अनुसारी ॥
जो तुम स्वामी देना चाहो। आप समान पुत्र बक्षाओ ॥
मम समान और कौ भोरी। मैं सुत होहुँ मात हित तोरी ॥
मैं छलने आया था तौही। उलटा छला मात ते मोही ॥
नापा साडुमात को मारण धाया। उसी समय प्रकटे यदुराया ॥
आम्बा निम्बा मरे सिरदारा। जिन्दा करया आप किरतारा ॥
किशना खाती का कोढ़ हटाया। कर दीन्ही कंचन सी काया ॥
प्रकटया जब प्रभु मालासेरी माही। राण नगर सारी थर्राई ॥
मारण विप्र आपको आया। संग आपके भुजंग पाया ॥
दुजा विप्र आया शैताना। बने आप उसी वक्त जवाना ॥
तीजा विप्र आया कर रीसा। वृद्ध रूप धरिया जगदीशा ॥
काल भैरव असुर बड़धारी। वश मे किया आप गिरधारी ॥
मालवा देश माहि गोविन्दा। छोछु भाट को किना जिन्दा ॥
धारा नगरी राजा की बाई। पीपलदे शुभ नाम कहाई ॥
ताके कोढ़ नशाये आपा। अखिंया खोली हरे सन्तापा ॥
भुणा जी को लेने ताई। छोछु भाट को जवान बनाया ॥
भुणा जी को कीना वीरा। टुट पड़या जुड़ा जंजीरा ॥
आप धणी देमाली आया। बीला जी का कोढ़ हटाया ॥
वैधा नाथ की धुणी आया। बहु कोढ़िन का कोढ़ हटायाद ॥
जैतु का सब संकट मेटा। इच्छा पुरी दीन्हा बेटा ॥
लाला था इक जात बलाई। उसकी आप दो देह बनाई ॥
दीनो के रक्षक कहलाओ।म्हारे ताई क्यो शरमाओ ॥
आशा पूरण करो हमारी। अरजी सुणयो बेग मुरारी ॥
मनोकामना पूरण किज्यो। अष्ट सिद्धि नव निधि दीज्यो ॥
कई मोहि मारे ताना।लज्जा तुम राखो भगवाना ॥
हंसी जो मेरी करवासी। उध्द बिड़द आपकी जासी ॥
आप हमारे गुरू पितु माता। आप ही मित्र द्रव धाता ॥
आप कृपा बुद्धि बल पाऊँ। दाता तुम कह जाचन जाऊँ ॥
जय जय जय भुणा जी के भ्राता। कुमति निवारो सुमति दाता॥
दुष्टो को अब बेग खपाओ। धर्म ध्वजा जग में फहराओ ॥
॥दोहा॥
चालिसा यह प्रेम से , जो नित पढ़े प्रभाता ।
मनोकामना पूरसी , श्रीदेमाली नाथ ॥
तन – मन से शनिवार को पाठ करें चालिस ॥
भैरूराम सब मिटे , सुख हो विश्वा बीस ॥