॥ दोहा ॥
श्रीशिव गुरु स्वामी माहेश्वर मज तु उद्धारी ।
उमा सहीत दायकु आर्शिवाद मज तु तारी ॥
बुद्धिदेवता तव जानिके दिये परशु तुमार ।
तव बल जानिये दुनिया सारी दुष्टि करे हहाकार ॥
॥ चौपाई ॥
जय परशुराम बलवान दुनिया सार।
जय रामभद्र कहे लोक करे जागर॥१॥
शिव शिष्य भार्गव तव नामा ।
रेणुका पुत्र जमतग्निसुत लामा ॥२॥
शुरविर नारायण तव अंगी ।
छटा अवतार सुहीत के संगी ॥३॥
परशु तव हस्ता दिसे सुवेसा ।
ऋषि मुद्रिका तव मन श्रेसा ॥४॥
हाथ शिवधनुष्य भार्गवा साजै ।
विप्र कुल कांधे जनेउ साजै ॥५॥
विष्णु अंश ब्रह्मकुलनंदन ।
तव गाथा पढे करे जग वंदन ॥६॥
वेद ही जानत असे चतुर ।
शिवजी के शिष्य बलशाली भगुर ॥७॥
पृथ्वि करे निक्षेत्र एक्कीस समया ।
विप्र रक्षोनी दुष्टास मारीया ॥८॥
भार्गव अवतारी तव गुन गावा ।
कर्म स्वरुपे तव चिरंजीवी पावा ॥९॥
सहस्राजुना तव तु संहारे ।
पिता वचन दिये तव तु पारे ॥१०॥
पीता होत तव अज्ञाये ।
माता शिरछेद कर तु जाये ॥११॥
जमदग्नी कहे मम पुत्र प्रियई ।
तुम जो चांहे आर्शिवाद मांगई ॥१२॥
भद्र कहते मम माता ही जगावैं ।
भ्राता सहीत मम सामोरी लावैं ॥१३॥
तव मुखमंडल दिसे ऋषिसा ।
घोर तपस्वि पठन संहीता ॥१४॥
मुद्रा गिने कुबेर ही थक जांते ।
तव धन कबि गिन ना पांते ॥१५॥
तुम उपकार ब्रह्मकुले कीह्ना ।
ब्रह्म मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
तुह्मरो शक्ती सब जग जाना ।
राक्षस कांपे तुमये भय माना ॥१७॥
तुम चिरंजीव असे जग जानु ।
जो करे तव भक्ती मधुर फल भानु ॥१८॥
बुद्धिदाता परशु हथ तुज देई ।
शिव धनुष्य माहेश्वर मिलमेेई ॥१९॥
दुष्ट संहार कर त्रिलोक जिते ।
ब्रह्मकुल के तुम भाग्यविधाते ॥२०॥
ऋषि मुनि के तुम रखवारे ।
शिव आज्ञा होत दुहीत को संहवारे ॥२१॥
सब जग आंये तुह्मरी शरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥
परशु चमक रवि ही छुंपै ।
भार्गव नाम सुनत दुष्ट थर कांपै ॥२३॥
रेणुका पुत्र नाम जब आंवै ।
तब तव गान सहस्र जुग गांवै ॥२४॥
परशुराम नाम सुरा ।
जपत रहो ब्रह्मविरा ॥२५॥
संकट पडे तो भद्र बचांवै ।
मन से ध्यान भार्गव जो लांवै ॥२६॥
जगत के तुम तपस्वी राजा ।
ब्रह्मकुल जन्मे उपकार मज वर कीजा ॥२७॥
इच्छा धरीत तुज भक्ती जो कीवै ।
इच्छित जो तिज फल पावै ॥२८॥
भार्गव नाम सुनित होय उजियारा ।
आज्ञा पालत तव जग दिवाकरा ॥२९॥
राम सह धनुर युद्ध पुकारे ।
अवतार सप्तम समज दुवारे ॥३०॥
युद्ध कौशल्य वेदो जानता ।
कौतुक देखे रेणुका माता ॥३१॥
चारो जुग तुज कीर्तीमासा ।
सदा रहो ब्रह्मकुल के रासा ॥३२॥
तेहतीस कोट देव तुज गुन गावै ।
भार्गव नाम लेत सब दुख बिसरावै ॥३३॥
तुज नाम महीमा लागे माई ।
जनम जनम करे पुण्य कमाई ॥३४॥
म्हारे चित्त तुज दुज ना जाई ।
सारे सेई सब सुख मज पाई ॥३५॥
परशुराम नाम सुने भागे पीरा ।
भद्र नाम सुनत उठे ब्रह्मविरा ॥३६॥
जय परशुराम कहें मज विप्राईं ।
तुज कृपा करहु भार्गव नाईं ॥३७॥
पठे जो यह शत बार कोई ।
भार्गव कृपा उस सदैव होई ॥३८॥
पढित यह परशुराम चालीसा ।
सुख शांती नांदे रहे विष्णुदासा ॥३९॥
वसंतसुत पुरुषोत्तम रज असै तैरा।
तुज भक्ती मोही जुग जग सारा ॥४०॥
॥ दोहा ॥
रेणुका नंदन नारायण अंश ब्रह्मकुल रुप ।
परशुराम भार्गव रामभद्र ह्रदयी बसये भुप ॥